रमेशराज
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रमेशराज की 4 ग़ज़लें
|| ग़ज़ल ||----1
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घनी उदासी अपने पास
बुझी नहीं अधरों की प्यास।
भले न ये दर्दालंकार
मत दे घावों के अनुप्रास।
अपनों से ये कैसी लाज?
तेरे मेरे रिश्ते खास।
इधर चुभन टीसों का दौर
क्या मन रहता उधर उदास?
मन मेरा तुझसे अनुबद्ध
कैसे छोडूँ तेरी आस।
जो पल बीते सँग में ‘राज’
उनकी अब भी मधुर सुवास।
+रमेशराज
|| ग़ज़ल ||---2
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सोने-चाँदी वाले तुमको बँगले की
रौनक भायी
इस निर्धन की कुटिया-लुटिया रास
नही प्रियतम आयी।
तुम क्या जानो इन्तजार की, प्रीति-प्यार
की तड़पन को
हमने हारे, सभी सहारे, आँख हमारी पथरायी।
मरते दम तक, बनकर याचक, हक माँगेंगे
अपना हम
बनो दुःखद दस्तूर-नूर तुम, हम न कहेंगे
हरजायी।
तुमने उड़ना सीख लिया तो उड़ो अजनबी
उस नभ में
अपनी इस ज़मीन की प्यारी हमको हैं
खंदक-खायी।
+रमेशराज
||ग़ज़ल ||---3
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प्यार हमारा, मन बंजारा, जख्मों से कर
डाला
गाती-मुस्काती आँखों को फिर मेघों
से भर डाला।
ये दिल तो था सिर्फ तुम्हारा, मीत सहारा इसके
तुम
आर-पार इसके पर तुमने झट से खंजर
का डाला।
मीत तुम्हारी, आदत प्यारी बदली
तो ऐसी बदली
कस्तूरी रागों में तुमने नित तेजाबी
स्वर डाला।
जिसमें मेरे नन्हे-मुन्नों सपनों
की किलकारी थी
तुमने मुस्काते परिचय में शक-संशय
का डर डाला।
यह मदमाती छल-पफरेब की दुनिया
तुम्हें मुबारक हो
जिसने आज हमारे मन पर दुःख से
भरा असर डाला।
+रमेशराज
|| ग़ज़ल ||---4
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उधर अगर लब पर मुस्कान
इधर बसा अन्दर तूफान।
मीत मोम-सा, अजब विलोम
खींचे बनकर खंजर प्रान।
वो छू ले तो हो झंकार
पा जाते हैं पत्थर जान।
देती एक अलौकिक हर्ष
अगर नज़र हो अधर समान।
आज कहे क्या मन की ‘राज’
सिर्फ प्रेम का मंतर ध्यान।
+रमेशराज
----------------------------------------------------------------------------रमेशराज,
15/109, ईसानगर, निकट-थाना सासनीगेट, अलीगढ़-202001, मो.-9634551630
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